अक्सर हम जब कोई प्रॉपर्टी ख़रीदते हैं तो कुछ ज़रूरी जानकारी को नज़रंदाज़ कर देते है , जैसे पेमेंट ऐग्रीमेंट

फुल पेमेंट एग्रीमेंट पर भी नहीं होता है स्वामित्व:- ✅

किसी भी प्रॉपर्टी को खरीदने के लिए किए जाने वाले एग्रीमेंट से भी किसी व्यक्ति को स्वामित्व हासिल नहीं होता है क्योंकि ऐसा एग्रीमेंट सिर्फ एक निश्चित समय के लिए किया जाता है। ✅

जब किसी संपत्ति का पूरी तरीके से भुगतान हो गया है तब उसे रजिस्ट्रेशन एक्ट में रजिस्ट्रेशन करवाना आवश्यक हो जाता है। एक निश्चित स्टांप ड्यूटी देकर फौरन रजिस्ट्रेशन करवा लेना चाहिए जिससे भविष्य में किसी भी प्रकार की कानूनी दिक्कत नहीं आए। ✅

लोग फुल पेमेंट एग्रीमेंट लेकर ही बैठ जाते हैं और संपत्ति पर अपना कब्जा ले लेते हैं। इस बात से समझते हैं कि संपत्ति पर उन्हें स्वामित्व मिल गया ।✅

कानून की अपेक्षा है कि जब भी कोई आदमी किसी दूसरे आदमी से किसी भी प्रकार की अचल संपत्ति को खरीदता है तब वह उसका रजिस्ट्रेशन करवाएं और ऐसा रजिस्ट्रेशन केवल रजिस्ट्रेशन एक्ट में होता है। ✅

किसी भी व्यक्ति को सिर्फ रजिस्ट्रेशन के बाद भी स्वामित्व पूरी तरह नहीं मिलता है बल्कि उसका नामांतरण भी करवाना होता है। ऐसा नामांतरण लोकल स्तर पर होता है जो ग्रामपंचायत और नगर निगम करती है। ✅

इस बात पर यह समझना चाहिए कि जब किसी संपत्ति का नामांतरण होने के बाद उस पर किसी व्यक्ति का स्वामित्व समझा जाता है ऐसी स्थिति में मात्र पॉवर ऑफ अटॉर्नी लिखवा लेने और वसीयत लिखवा लेने से या फिर फुल पेमेंट एग्रीमेंट कर देने से किसी भी दूसरे आदमी को स्वामित्व कैसे मिल सकता है। ✅

स्टांप ड्यूटी से बचने के यह सब तरीके ठीक नहीं है क्योंकि इन तरीकों से संपत्ति को खरीदने वाला बहुत बड़ा नुकसान उठा सकता है। ✅

संपत्ति बेचने वाला ही मुकदमा कर सकता है या फिर यह हो जाए कि संपत्ति बेचने वाले की मृत्यु हो जाए और उसके बाद उसके वारिस संपत्ति को लेकर न्यायालय में कोई वाद ले आए। उसके वारिस न्यायालय में यह साबित कर सकते हैं कि संपत्ति उसके उत्तराधिकार में हैं और उसका स्वामित्व उस व्यक्ति के पास है जिससे संपत्ति उन्हें उत्तराधिकार में मिली है। ✅

2011 के एक प्रकरण में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट रूप से कहा है कि जिन मामलों में स्टांप ड्यूटी बचाने के लिए इस प्रकार से हेरफेर की जाती है और केवल फुल पेमेंट एग्रीमेंट लेकर बैठा जाता है या फिर पॉवर ऑफ अटॉर्नी और वसीयत के जरिए किसी संपत्ति को खरीद लिया जाता है तब कोई भी मामला अगर न्यायालय में लाया गया तो उस पर सुनवाई नहीं की जाएगी और न्यायालय का पक्ष जरा भी उदार नहीं होगा क्योंकि संपत्ति खरीदने वाले व्यक्ति ने सरकार के राजस्व को चोट देने की सोची है तथा वे कपटी है और ऐसे कपटी को किसी भी सूरत में राहत नहीं दी जा सकती। 🛑🛑

ध्यान दें –

जब कभी हम किसी संपत्ति को खरीदते हैं तब सरकार को उसका संपूर्ण राजस्व अदा करें अन्यथा न्यायालय किसी भी प्रकार से मामले में हस्तक्षेप नहीं करता है और स्पष्ट रूप से यह कहता है कि आपने स्वयं कानून के विरुद्ध कार्य किया है और सरकार के राजस्व को गबन का प्रयास किया है।

– डॉ. नितिन शाक्या, IAS (2019 Batch)